
आज देश में जिस तरीके से बेतुकी बयानबाजी हो रही है, जो आपत्तिजनक बोल बोले जा रहे हैं, वह बेहद दुखद है। लग रहा है कि वाणी पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। इस तरह व्यवहार के कारण देश और समाज में किस तरीके से अशांति और अराजकता का माहौल पैदा हो जाता है, यह सामने है। इसका नुकसान किसी एक क्षेत्र या एक समुदाय तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसका पूरा प्रभाव देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक-सांस्कृतिक व्यवस्था पर पड़ता है।
नेताओं के बिगड़ते बोल और भाषा का गिरता स्तर आज कबीर की कुछ पंक्तियां याद दिलाता है जिनकी प्रासंगिकता आज कहीं ज्यादा बढ़ गई है। कबीर सदियों पहले लिख गए हैं कि ऐसी ‘वाणी बोलिए जा में मन का आपा खोए औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय’। लेकिन लगता है कि आज कोई कबीर की इन पंक्तियों को कोई आत्मसात करने के लिए तैयार नहीं है।