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महाराष्ट्र पुलिस में डॉक्टर और इंजीनियर की फौज, मुंबई सीपी भी हैं आईआईटी कानपुर से बीटेक

मुंबई: सुहास वारके को बुधवार को मुंबई क्राइम ब्रांच(Mumbai Crime Branch) का नया चीफ बनाया गया है। वह पेशे से पुलिस में हैं, लेकिन उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री ली हुई है। फोर्स वन के लंबे समय तक चीफ रहे सुखविंदर सिंह, रेलवे की अडिशनल डीजी प्रज्ञा सरवदे, आईजी चेरिंग दोरजे , नवी मुंबई के जॉइंट सीपी जय जाधव, नाशिक ग्रामीण और अमरावती की पुलिस कमिश्नर रही आरती सिंह, आंगड़िया केस में वॉन्टेड चल रहे डीसीपी सौरभ त्रिपाठी, आईपीएस अभिनव देशमुख–इन व कई अन्य पुलिस अधिकारियों ने भी डॉक्टरी की यानी एमबीबीएस की डिग्री ली हुई है। एक बार मुंबई के एक पुलिस कमिश्नर ने मजाक में कहा था कि पुलिस डिपार्टमेंट में भला डॉक्टरों का क्या काम है? लेकिन हकीकत यह है कि पुलिस विभाग में सिर्फ डॉक्टर ही नहीं, भारी संख्या में इंजिनियर भी हैं।

आईआईटी से बीटेक हैं मुंबई सीपी
मुंबई के वर्तमान पुलिस कमिश्नर संजय पांडेय ने आईआईटी कानपुर से बीटेक किया हुआ है। पुणे के पुलिस कमिश्नर अमिताभ गुप्ता, प्रिंसिपल सेक्रेटरी संजय सक्सेना, ट्रैफिक पुलिस के डीसीपी राज तिलक रौशन भी आईआईटी से ही पढ़े हुए हैं। आज यदि यह सभी पुलिस अधिकारी किसी प्राइवेट जॉब में होते, तो उनका करोड़ों का पैकेज होता। यदि पिछले कुछ सालों का आईआईटी का कैम्पस प्लेसमेंट देख लें, तो कुछ को दो से ढाई करोड़ या उससे ज्यादा के भी सालाना पैकेज मिले हैं। यानी औसतन मासिक सैलरी 15 से 20 लाख रुपये के बीच है। यदि रिटायर्ड आईजी राजेश पांडेय की बात पर यकीन करें, तो डीजी रैंक के आईपीएस अधिकारी की मासिक सैलरी अधिक से अधिक पौने तीन लाख रुपये होगी। मुंबई के वर्तमान पुलिस कमिश्नर संजय पांडेय भी डीजी रैंक में हैं।

सिविल सर्विस का चार्म अलग होता है
राजेश पांडेय कहते हैं कि जो सिविल सर्विस या आल इंडिया सर्विस है, उसका चार्म ही अलग होता है। जैसे कलेक्टर का ही उदाहरण ले लें। कलेक्टर मतलब आईएएस अधिकारी। 20 करोड़ रुपये के सालाना पैकेज वाला भी उससे अपॉइंटमेंट लेता है। यदि किसी से कहलाया नहीं, तो आधे घंटे उसे इंतजार भी करना पड़ेगा। उसके स्वाभिमान को बहुत चोट लगती है कि बताओ भला कि वह दो लाख रुपये महीने पाता है और मैं 50 लाख या डेढ़ करोड़ रुपये महीने, फिर भी मुझे उसने इंतजार करवा दिया। पांडेय के अनुसार यह चार्म है, जो पैसे से ऊपर उठ जाता है। गूगल का सीईओ लखनऊ के हजरतगंज में घूमे, तो उसे कोई नहीं देखेगा, लेकिन वर्दी पहनकर एडीजी, लॉ एंड ऑर्डर सड़क पर निकल जाएगा, तो वहां देखने वालों की भीड़ जरूर लग जाएगी। ऐसे पदों का आभामंडल होता है। इसमें बड़ा चुंबकीय आकर्षण होता है। चुंबक की तरह आदमी वहां चिपकना चाहता है। वह तमाम लोगों को खींच कर यहां ले आता है, डॉक्टरों और आईआईटी से डिग्री लिए इंजीनियरों को भी।

महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व चीफ के.पी.रघुवंशी सिविल सर्विसेज से जुड़े इंटरव्यू बोर्ड में साल 2017 और साल 2018 में लगातार दो साल तक रहे। उन्होंने एनबीटी को चार महत्वपूर्ण बातें बताईं। पहली, यह कि इंटरव्यू में आने वाले 80 से 85 प्रतिशत लोग इंजिनियर या डॉक्टर ही थे। जिन्होंने इंटरव्यू दिया, उनमें से ज्यादातर ने माना –सिविल सर्विस की नौकरी का सोसाइटी में अलग ही स्टेटस होता है।

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