गोखले ब्रिज में फेल हुई इंजीनियरिंग: कहानी भारत के पहले बड़े ‘गलत’ निर्माण की, इंजीनियर ने कर लिया था सुसाइड

सरकार की ओर से क्रेडिट लेने की होड़ और फेल इंजीनियरिंग सिस्टम ने मुंबई के अंधेरी में करीब 85 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले गोखले ब्रिज को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है. इस घटना ने रेलवे और बृहन्मुंबई नगर निगम के इंजीनियरों की विश्वसनीयता संकट में डाल दी है.
पहली बार भारत में इंजीनियरिंग सिस्टम का भद्दा मजाक उड़ाया जा रहा है. सोशल मीडिया यूजर्स पुल की तस्वीर शेयर कर सरकार से 2 सवाल पूछ रहे हैं. पहला सवाल- पुल क्रॉस करने को लेकर है तो दूसरा सवाल भ्रष्टाचार को लेकर.
कहा जा रहा है कि भारत में पहली बार ऐसा ऊपरी पुल का निर्माण हुआ है, जिसे कूदकर या उड़कर ही पार किया जा सकता है. दिलचस्प बात है कि अपनी-अपनी लापरवाही और भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए ब्रिज से जुड़े सरकार के दो विभाग एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने में जुटे हैं.
वहीं कुछ लोग मुंबई के गोखले ब्रिज की तुलना बलूचिस्तान के खोजक टनल से कर रहे हैं. वजह दोनों की कहानी का लगभग एक जैसा होना है.
पहले जानिए खोजक टनल की कहानी
बात साल 1889 की है. स्थान था ब्रिटिश भारत का बलूचिस्तान. रूसी हमले से बचने के लिए अंग्रेजों ने यहां खोजक रेलवे टनल बनाने का फैसला किया. उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक अंग्रेजी इंजीनियरों ने टनल को 3 साल के भीतर ही बनाने का लक्ष्य रखा था.
ये लक्ष्य पूर्ण करने के लिए इंजीनियरों ने दोनों तरफ से खुदाई का काम शुरू करवा दिया. टनल की खुदाई ने रफ्तार पकड़ी तो कई मजदूरों को असुरक्षा की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ गई, लेकिन मामले में नया मोड़ टनल के आखिर पड़ाव पर आया.
कहा जाता है कि जब टनल की खुदाई दोनों ओर से पूरी हो गई तो यह अफवाह फैल गई कि दोनों की खुदाई में भारी फर्क है, जिसकी वजह से इसके सिरे का मिलना मुश्किल है.
इंजीनियरों ने जब यह बातें सुनी तो वहां से गायब हो गए. डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक चीफ इंजीनियर ने पूरी घटना की जिम्मेदारी लेते हुए खुदकुशी कर ली, हालांकि कई प्रयासों के बाद 1891 में वहां टनल का काम पूरा हुआ. लेकिन गोखले ब्रिज की कहानी पढ़ेंगे तो आज के सिस्टम में कमी और और श्रेय लेने होड़ में नैतिकता का पैमाना किसी विलुप्त हो चुकी परंपरा से मिल खाता दिखेगा.
गोखले ब्रिज का पूरा मामला क्या है?
मुंबई में एक जगह है अंधेरी, यहां की आबादी करीब 15 लाख है. इसी अंधेरी के आसपास रेलवे की कई लाइनें गुजरती हैं. इन्हीं रेल लाइनों को क्रॉस करने के लिए 1975 में गोखले ब्रिज बनाया गया.
यह ब्रिज मुंबई के कई पॉश इलाकों को एकसाथ जोड़ने का काम कर रहा था, जिससे अंधेरी और आसपास के लोगों की कनेक्टिविटी काफी बेहतरीन थी, लेकिन 2018 में इसका एक हिस्सा टूटकर गिर गया. ब्रिज के टूटने से 2 लोगों की मौत हो गई. उस वक्त केंद्र और राज्य में एनडीए की सरकार थी. विवाद बढ़ने पर मुंबई नगरपालिका ने इस ब्रिज को फिर से बनाने की बात कही.
2024 चुनाव से कुछ महीने पहले इस ब्रिज को खोलने की घोषणा महाराष्ट्र सरकार ने की है, हालांकि अधूरे निर्माण ने सरकार को बैकफुट पर धकेल दिया है. बैकफुट पर गई सरकार गोखले ब्रिज को लेकर कुछ भी नहीं बोल पा रही है.
गोखले पुल की तकनीकी समस्या को समझिए
बड़ा सवाल ये है कि निर्माण होने के बाद अब गोखले ब्रिज पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? आइए इसे विस्तार से समझते हैं-
गोखले ब्रिज अंधेरी पश्चिम और पूर्व को हिस्से को जोड़ता है. इसी के पास सीडी बर्फीवाला नामक फ्लाईओवर है, जो मुंबई के कई पॉश इलाकों को अंधेरी से सीधे जोड़ने का काम करता है. ब्रिज के एक भाग को फ्लाईओवर से जोड़ना था, लेकिन यह जुड़ नहीं पाया. मुंबई नगरपालिका की लापरवाही की वजह से ब्रिज और फ्लाईओवर के बीच 2 मीटर की गहरी खाई बन गई है.
अब सीडी बर्फीवाला जाने वालों को ब्रिज का चक्कर लगाना पड़ेगा. फ्लाईओवर और ब्रिज के अलाइनमेंट न होने की वजह से अंधेरी, जुहू, वर्सोवा और लोखंडवाला से आने वाले लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ेगा.
विवाद होने पर नगर निगम का कहना है कि दोनों पुलों की ऊंचाई में दिक्कत आ गई, इसलिए अब नए सिरे से इसका निर्माण करना पड़ेगा. वहीं एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर दोनों के अलाइनमेंट की कोशिश की गई तो स्वामी विवेकानंद मार्ग और जुहू मार्ग को पूरी तरह से बंद करना पड़ेगा, जिससे मुंबई में जाम का संकट और गहरा जाएगा.
गोखले ब्रिज को लेकर आखिर ऐसी नौबत क्यों आई?
इसकी बड़ी वजह रेलवे और नगरपालिका के बीच सामंजस्य न होना बताया जा रहा है. नवंबर 2021 में बीएमसी ने जो प्रस्ताव दिया, उसे रेलवे ने खारिज कर दिया. इसमें रेलवे के पिलर नंबर 5 से बर्फीवाला फ्लाईओवर को जोड़ने का प्रस्ताव था. रेलवे का कहना था कि नए नियम और यातायात की वजह से यह संभव नहीं है. बीएमसी ने इसके बाद रेलवे को नया प्रस्ताव दिया.
इस प्रस्ताव के तहत रेलवे पुल की ऊंचाई 8.5 मीटर स्वीकृत की गई. नगर निगम ने जब यह कंस्ट्रक्शन तैयार किया तो वो बर्फीवाला फ्लोईओवर से काफी ऊंचा हो गया. निगम के अधिकारियों को कहना है कि अगर इस हालात में दोनों पुल को जोड़ा जाता तो यहां हर दिन दुर्घटनाएं होती.
ब्रिज की लागत कितनी, कौन-कौन अधिकारी शामिल थे?
बीएमसी ने ब्रिज निर्माण के लिए करीब 85 करोड़ (जीएसटी समेत) रुपये का टेंडर निकाला था. ब्रिज का निर्माण स्टील और कंक्रीट के साथ होना था. बीएमसी ने इस पूरे निर्माण को 2 फेज में कराने का निर्णय लिया था, जिससे यातायात बाधित न हो.
एबीपी माझा की रिपोर्ट के मुताबिक इस पूरे काम के लिए बड़े-बड़े अधिकारियों की तैनाती की गई थी. खुद बीएमसी कमिश्नर पूरे मामले की मॉनिटरिंग कर रहे थे.
रिपोर्ट के मुताबिक नगर निगम की तरफ से मुंबई नगर निगम आयुक्त इकबाल सिंह चहल, अपर आयुक्त पी वेलरासु. ग्रेटर मुंबई नगर निगम के उपायुक्त (इंफ्रास्ट्रक्चर) उल्हास महाले (सेवानिवृत्त), मुख्य अभियंता (पुल) विवेक कल्याणकर इस प्रोजेक्ट में शामिल थे.
इसके अलावा पश्चिम रेलवे के अधिकारी भी प्रोजेक्ट की देखरेख कर रहे थे. ब्रिज बनाने का काम इन्फ्राबिल्ट कंपनी को मिला था. स्थानीय बीजेपी के विधायक अमित साटम और ऋतुजा लटके भी इसमें शामिल थे. साइट निरीक्षण करते हुए साटम की कई तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.