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चुनावी राजनीति में मुसलमान और बाकी अल्पसंख्यकों का क्या है रोल?

17 जनवरी 2023 को राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के जरिये बीजेपी ने इस साल 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों की मुहीम का आगाज कर दिया है. इस बैठक के दौरान पीएम ने पार्टी के सभी नेताओं से देश के लोगों को जोड़ने की बात कही.

 

पीएम मोदी ने अपने नेताओं के बीच कहा, ‘मुस्लिम समाज के बारे में गलत बयानबाजी न करें. मुस्लिम समुदाय के बोहरा, पसमांदा और पढ़े-लिखे लोगों तक सरकार की नीतियों को लेकर जाएं. समाज के सभी अंगों से जुड़ना और जोड़ना ही हमारा मकसद होना चाहिए’

पीएम मोदी ने कहा कि हमें पसमांदा और बोहरा समाज से मिलना चाहिए. कार्यकर्ताओं के साथ संवाद बनाकर रखना होगा. समाज के सभी वर्गों से मुलाकात करें. चाहे वोट दें या ना दें, लेकिन मुलाकात करें. पार्टी के कई नेताओं को अब भी लगता है कि विपक्ष में हैं. पार्टी के कई लोगों को मर्यादित भाषा बोलनी चाहिए.

इससे पहले साल 2022 में हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पीएम मोदी ने ऐलान किया था कि पार्टी का मिशन मुसलमानों के करीब तक पहुंचने का होना चाहिए. इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण कश्मीर के नेता गुलाम अली खटाना को राज्यसभा भेजना भी है. इस तरह का फैसला लेना ये साफ दिखाता है कि बीजेपी मुसलमानों से करीबी बढ़ाने की कोशिश में लगी है.

 

इन तमाम बयानबाजी और कोशिशों के बीच सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी में मुसलमानों के प्रति आ रहे इस बदलाव का कारण क्या है? और चुनावी राजनीति में मुसलमान और बाकी अल्पसंख्यकों का क्या रोल है?

पहले समझिये की भारत में कुल आबादी का कितना प्रतिशत है अल्पसंख्यक 

  • कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर 6 धार्मिक समुदाय मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध,जैन तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था.
  • साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार अल्पसंख्यकों की आबादी देश की कुल आबादी का लगभग 19.3 प्रतिशत है. जिसमें सबसे ज्यादा मुसलमानों की आबादी 14.2 फीसदी है. वहीं ईसाई 2.3 फीसदी, सिख 1.7 फीसदी, बौद्ध 0.7 फीसदी,जैन 0.4 फीसदी और पारसी 0.006 फीसदी है.
  • 27 जनवरी 2014 को केंद्र सरकार ने राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक आयोग कानून 1992 की धारा 2 के अनुच्छेद (ग) के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का उपयोग करते हुए, जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित कर दिया था.

भारत  में किन राज्यों में कितने फीसदी मुसलमान

अब जानते हैं कि देश के किस राज्य में कितनी मुस्लिम आबादी है, इससे हम ये भी आंदाजा लगा पाएंगा की मौजूद पसमांदा मुस्लिमों की आबादी कितनी है.

  • जम्मू कश्मीर- 68.31%
  • पंजाब- 1.93%
  • हरियाणा- 7.03%
  • राजस्थान- 9.07%
  • गुजरात- 9.67%
  • मध्य प्रदेश- 6.57%
  • उत्तर प्रदेश – 19.26%
  • बिहार- 16. 87%
  • बंगाल- 27.01%
  • दिल्ली- 12.86%
  • उत्तराखंड- 13.95%
  • हिमाचल प्रदेश- 2.18%
  • सिक्किम- 1.62%
  • असम- 34.22%
  • मेघालय- 4.40%
  • महाराष्ट्र- 11.54%
  • ओडिशा- 2.17%
  • झारखंड- 14.53%
  • मिजोरम- 1.35%
  • मणिपुर- 8.40%
  • नागालैंड- 2. 47%
  • कर्नाटक- 12.92%
  • लक्षद्वीप – 96.58%
  • तमिलनाडु- 5.86%

यूपी में 8 प्रतिशत मुस्लिम वोटर ने किया बीजेपी को वोट 

एक धारणा बनी हुई है कि मुस्लिम वोटर बीजेपी के खिलाफ मतदान करते हैं, लेकिन सीएसडीएस-लोकनीति के एक सर्वे के यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी कम से कम आठ प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल करने में सफल रही है. यूपी में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान 19.26 प्रतिशत मुस्लिम वोटों में से समाजवादी पार्टी को लगभग 79 प्रतिशत वोट मिले और आठ प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला, जो 2017 में हुए चुनाव की एक प्रतिशत की वृद्धि है.

बिहार में कितने मुस्लिम वोटर 

2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल आबादी 10,40,99,452 है. वहीं कुल आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत 16.9 है. वर्तमान में इस राज्य में की कुल आबादी 1,75,5,78,09 है. जिसमें पुरुष 90,44,086 और महिलाएं 85, 13,723 है.

गुजरात में बीजेपी की जीत में मुसलमानों का योगदान

2022 में हुए विधानसभा चुनाव में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की रिकॉर्डतोड़ जीत को लेकर दिलचस्प चर्चा हो रही है कि पार्टी ने उन इलाकों में जीत दर्ज की जहाँ अच्छी-खासी मुसलमानों की आबादी है. राज्य में पार्टी के प्रवक्ता यग्नेश दवे ने बीबीसी से बातचीत में दावा किया कि उनकी पार्टी को ट्रिपल तलाक खत्म करने और यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठाने की वजह से बड़ी तादाद में मुसलमानों के वोट मिले हैं. इन चुनाव में कांग्रेस ने छह और आम आदमी पार्टी ने चार मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट दिया था.

गेमचेंजर साबित हो सकते हैं पसमांदा और बोहरा मुसलमान

पसमांदा मुस्लिम के बीच काम कर रहे बीजेपी से जुड़े आतिफ रशीद कहते हैं, ‘यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद पीएम मोदी को जो रिपोर्ट सौंपी गई थी. उसमें एक पैरा को खासतौर पर हाई लाइट कराते हुए कहा गया था कि पसमांदा मुस्लिम बहुल इलाकों से बीजेपी को उम्मीद से भी ज्यादा वोट मिले हैं. यह इस बात का संकेत है कि मुस्लिमों का सबसे पिछड़ा वर्ग केंद्र सरकार की नीतियों से खुश है, जिसे बरकरार रखने और भविष्य में भी उनका भरोसा कायम रखने की जरूरत है.

शायद यही वजह है कि दिल्ली से पहले हैदराबाद में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी ने इस बात पर जोर दिया था कि पार्टी के सभी सांसद व विधायक पिछड़े मुस्लिमों के इलाके में जाकर देखें कि उन्हें केंद्र की सभी कल्याणकारी योजनाओं का पूरा फायदा मिल रहा है या नहीं और अगर कोई कमी दिखती है तो उसे पूरा करने के लिये स्थानीय प्रशासन को तत्काल निर्देश दें.

रशीद कहते हैं कि पूरे मुस्लिम समुदाय में 80 फीसदी पसमांदा हैं, लेकिन नौकरियों और कॉलेज की सीटों पर सिर्फ ऊंची जाति वाले अशराफ समुदाय के मुसलमानों का कब्जा है. रशीद कहते हैं कि इस्लाम में जातियों का कोई जिक्र नहीं है, लेकिन जमीन में इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है. उनका कहना है कि जब भी पसमांदा अपने अधिकारों की बात करते हैं उनके सामने मुसलमानों को बांटने का सवाल खड़ा कर दिया जाता है.

हालांकि ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद पूर्व पत्रकार अली अनवर का कहना है कि पीएम मोदी पिछले कुछ दिनों से पसमांदा और बोहरा समाज से मिलने की बात कर रहे हैं. समाज के सभी वर्गों से मुलाकात करने की बात कर रहे हैं. लेकिन हम बेवकूफ नहीं है. हमें पता है कि ये बातें सिर्फ चुनाव के समय की जाती है. अगर पीएम मोदी इन बातों को दिल से बोलते और उसपर खुद अमल करते तो सीएए- एनआरसी के वक्त वह कपड़े से लोगो को पहचानने की बात नहीं करते.

उन्होंने आगे कहा,’ पीएम के अलावा बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने इस तरह की बयानबाजी की है. इनके गृहमंत्री कह रहे हैं कि बटन यहां दबाओ तो शाहीन बाग को करेंट लगे. ये कोई भाषा है औरतों से बात करने की. आज बीजेपी पसमांदा से स्नेह की बात कर रहे हैं तो बिलकिस बानो कौन हैं. बीजेपी ने तब एकजुटता की बात क्यों नहीं की जब मुस्लिम महिलाओं को बुल्ली बाई कह कर संबोधित किया जाता है.

अली अनवर ने कहा, ‘इनके मंत्री रोज होली मारो सालों को जैसा बयान दे रहे हैं. प्रधानमंत्री का पूरे देश में शासन है. इनके मंत्री अगर ऐसी बात कहते हैं तो हम क्या समझे कि पीएम का कंट्रोल अपनी ही पार्टी पर नहीं है. उन्हें लगता है कि पसमांदा मुसलमान इन सब बातों को भूल गया है. नहीं हमें सब याद है और मुझे नहीं लगता चुनाव में पीएम मोदी को पसमांदा से कोई फायदा मिलेगा.’

क्या है पसमांदा मुसलमानों का गणित

इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूपी या देश के दूसरे राज्यों में मुसलमानों को वोट बीजेपी को कभी नहीं मिला. ये जरूर रहा है कि जिस पार्टी में भी बीजेपी को हराने का दम दिखा मुसलमानों का एकमुश्त वोट मिला. लेकिन जहां भी ये वोटबैंक बिखरा बीजेपी को उससे फायदा हुआ है.

लेकिन बीजेपी ने भी इसको लेकर रणनीति बनाई है. इसको लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटें जीतने के प्लान के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है.

कौन हैं पसमांदा मुस्लिम

पसमांदा शब्द मुसलमानों की उन जातियों के लिए बोला जाता है जो सामाजिक रूप से पिछड़े हैं या फिर कई अधिकारों से उनको शुरू से ही वंचित रखा गया. इनमें बैकवर्ड, दलित और आदिवासी मुसलमान शामिल हैं. लेकिन मुसलमानों में जातियों का ये गणित हिंदुओं में जातियों के गणित की तरह ही काफी उलझा हुआ है. और यहां भी जाति के हिसाब से सामाजिक हैसियत तय की जाती है.

साल 1998 में पहली बार ‘पसमांदा मुस्लिम’ का इस्तेमाल किया दया था. जब पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने पसमांदा मुस्लिम महाज का गठन किया था. उसी समय ये मांग उठी थी कि सभी दलित मुसलमानों की अलग से पहचान हो और उनको ओबीसी के अंतर्गत रखा जाए.

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