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श्रृंगार गौरी में पूजा की याचिका सुनी जाए या नहीं, वाराणसी कोर्ट आज सुनाएगा फैसला; शहर में धारा 144

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद में वाराणसी कोर्ट आज अहम फैसला सुनाएगा। जिला अदालत यह तय करेगी कि ज्ञानवापी मस्जिद के कैंपस में मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा की अनुमति देने वाली याचिका पर सुनवाई की जाए या नहीं। वाराणसी के जिला जज एके विश्वेश ने पिछले महीने हुई सुनवाई के बाद 12 सितंबर तक फैसला सुरक्षित रख लिया था।

बेहद संवेदनशील माने जा रहे इस केस में कोर्ट के आदेश के मद्देनजर आस-पास के इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई है। शहर में हिंदू-मुस्लिमों की मिली-जुली आबादी वाले इलाके में पुलिस फोर्स की तैनाती की गई है। पुलिस ने कुछ इलाकों में बीती रात से ही गश्त बढ़ा दी है, ताकि आदेश के बाद कानून-व्यवस्था के हालात न बिगड़ें।

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी से जुड़ा केस क्या है?
पांच हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मौजूद हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की अनुमति मांगी है। इन महिलाओं ने खासतौर पर श्रृंगार गौरी की हर दिन पूजा करने की इजाजत चाही थी। कोर्ट के आदेश पर मस्जिद में सर्वे भी किया गया था। सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि मस्जिद के तहखाने में शिवलिंग मौजूद है, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था। केस में अब तक क्या हुआ, 3 पॉइंट्स में समझिए…

18 अगस्त 2021 को 5 महिलाएं ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी, गणेश जी, हनुमान जी समेत परिसर में मौजूद अन्य देवताओं की रोजाना पूजा की इजाजत मांगते हुए हुए कोर्ट पहुंची थीं। अभी यहां साल में एक बार ही पूजा होती है।
इन पांच याचिकाकर्ताओं का नेतृत्व दिल्ली की राखी सिंह कर रही हैं, बाकी चार महिलाएं सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और रेखा पाठक बनारस की हैं।
26 अप्रैल 2022 को वाराणसी सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के सत्यापन के लिए वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश दिया था।

हिंदुओं का तर्क: औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई

मान्यता है कि 1669 में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर का एक हिस्सा तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तान ने मंदिर को तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी।
कुछ मान्यताओं के अनुसार अकबर ने 1585 में नए मजहब दीन-ए-इलाही के तहत विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी।
मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा। स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था।
शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा। किंवदंतियों, आम जनमानस की मान्यताओं में यह कुआं सीधे पौराणिक काल से जुड़ता है।
मुस्लिम पक्ष की दलील: यह वक्फ प्रॉपर्टी, नाम शाही मस्जिद आलमगीर

मसाजिद कमेटी की जवाबी बहस 22 अगस्त से लगातार जारी है। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि वर्ष 1936 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था। वर्ष 1944 के गजट में यह बात सामने आई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम शाही मस्जिद आलमगीर है।
संपत्ति शहंशाह आलमगीर यानी औरंगजेब की थी। वक्फ करने वाले के तौर पर भी बादशाह आलमगीर का नाम दर्ज था। इस तरह से बादशाह औरंगजेब द्वारा 1400 साल पुराने शरई कानून के तहत वक्फ की गई (दान दी गई) संपत्ति पर वर्ष 1669 में मस्जिद बनी और तब से लेकर आज तक वहां नमाज पढ़ी जा रही है।
इसके अलावा, 1883-84 में अंग्रेजों के शासनकाल में जब बंदोबस्त लागू हुआ तो सर्वे हुआ और आराजी नंबर बनाया गया। आराजी नंबर 9130 में उस समय भी दिखाया गया था कि वहां मस्जिद है, कब्र है, कब्रिस्तान है, मजार है, कुआं है। पुराने मुकदमों में भी यह तय हो चुका है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की प्रॉपर्टी है।
सरकार भी इसे वक्फ प्रॉपर्टी मानती है, इसी वजह से काशी विश्वनाथ एक्ट में मस्जिद को नहीं लिया गया। वर्ष 2021 में मस्जिद और मंदिर प्रबंधन के बीच जमीन की अदला-बदली हुई वह भी वक्फ प्रॉपर्टी मान कर ही की गई। इसलिए मां शृंगार गौरी का मुकदमा सिविल कोर्ट में सुनवाई योग्य नहीं है।

वाराणसी के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में बनी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जारी विवाद वर्षों पुराना है। इन मंदिर-मस्जिद को लेकर 213 साल पहले दंगे भी हो चुके हैं। हालांकि, आजादी के बाद इस मुद्दे को लेकर कोई दंगा नहीं हुआ। ज्ञानवापी को हटाकर उसकी जमीन काशी विश्वनाथ मंदिर को सौंपने को लेकर दायर पहली याचिका अयोध्या में राम मंदिर मुद्दा उठने के बाद 1991 में दाखिल हुई थी।

वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में हिंदू पक्ष का दावा खारिज हो सकता है। अंजुमन इंतेजामिया प्रबंध समिति ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर करके कहा है कि ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने वाला वाराणसी सिविल कोर्ट का आदेश स्पष्ट रूप से द प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंस) एक्ट 1991 का उल्लंघन है। इसके बाद ज्ञानवापी विवाद की पूरी बहस इसी कानून के इर्द-गिर्द टिकी हुई है।

‘मैंने बचपन में एक बात सुनी थी। कबूतर जब बिल्ली को देखता है तो वह जानता है कि बिल्ली उसे खा जाएगी। बिल्ली को कबूतर बहुत स्वादिष्ट लगता है। कबूतर इतना भोला और नादान होता है कि वह सोचता है कि आंखें बंद कर लूंगा तो बिल्ली दिखेगी नहीं। इस तरह से बिल्ली उसको खा जाती है। 1947 की स्थिति में धार्मिक स्थलों को बनाए रखना, यानी कबूतर की तरह बिल्ली से आंखें मूंदना है।’ 9 सितंबर 1991 को लोकसभा में द प्लेसेज ऑफ वर्शिप बिल (उपासना स्थल विधेयक) पर बहस के दौरान यह बात भाजपा नेता उमा भारती ने कही थी।

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद अभी थमा भी नहीं था कि अब मथुरा में श्री कृष्ण जन्म भूमि के परिसर में स्थित मस्जिद के भी सर्वे कराए जाने की याचिका अदालत पहुंच गई है। उधर ताजमहल के भी शिव मंदिर तेजो महालया होने के दावे को लेकर याचिका दायर की गई है। इस बीच हिंदू संगठनों के कुछ कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में कुतुब मीनार के पास हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए इसका नाम बदलकर विष्णु स्तंभ किए जाने की मांग की। हालांकि, भारत में मंदिर-मस्जिद से जुड़ा विवाद नया नहीं है। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की हुई, जो 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद थम गया।

पुलिस कमिश्नर ने वाराणसी में मोर्चा संभाला
वाराणसी के पुलिस आयुक्त ए सतीश गणेश ने बताया, “वाराणसी की एक अदालत एक महत्वपूर्ण मामले पर फैसला सुना सकती है। शहर में धारा 144 लागू की गई थी। पुलिस बल उन क्षेत्रों में तैनात है जहां मिश्रित आबादी रहती है। गश्त जारी है। हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कोई कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा न हो।” सोशल मीडिया की मॉनिटरिंग हो रही है। जिला अदालत परिसर में खास चौकसी बरतते हुए बम निरोधक दस्ता और डॉग स्क्वॉड तैनात किया गया है।

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