अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021: लैंगिक समानता का दंभ भरती फिल्मों का यथार्थ
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जब हम महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में योगदान और संघर्ष का उसत्व मनाते हैं तो साथ ही हमें हिंदी साहित्य और सिनेमा का जेंडर की दृष्टि से पुनर्पाठ करने की भी आवश्यकता है। साहित्य और सिनेमा मात्र मनोरंजन नहीं करता बल्कि उस समय-काल की विचारधारा का परिचय व उसकी स्थापना भी करता है। अत: हमें आवश्यकता है कि हम महिलाओं की बदल रही छवि की सचेत पड़ताल करें कि कहीं जेंडर समानता की आड़ में पितृसत्तात्मक मूल्यों की पुनःस्थापना तो नहीं कर रही है।
ज्ञान और संचार के विभिन्न माध्यमों पर हमेशा से ही पितृसत्तात्मक विचारधारा का ही वर्चस्व रहा है, फिर चाहे सामाजिक मानसिकता की बात हो या कला या मीडिया की। जहां एक ओर हिंदी साहित्य महिलाओं के साहित्य को निजता की अभिव्यक्ति कह कर पुरुषों के बरक्स रखते हुए सिरे से खारिज करने का प्रयास करता है तो वहीं मीडिया और हिंदी सिनेमा महिलाओं की लाख उपलब्धियों के बाद भी जब उनके बारे में बात करता है तो उन्हें पारिवारिक संबंधों के आधार पर ही संबोधित करता है जैसे – बेटी, पत्नी, मां इत्यादि।
ऐसा सिर्फ प्रिंट और विज़ुअल मीडिया ही नहीं करते बल्कि हिंदी सिनेमा भी जब कभी किसी विख्यात महिला की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, कलात्मक या शैक्षिणिक उपलब्धियों को लेकर फिल्में बनता है ऐसे में उसके भी केंद्र में उस महिला की उपलब्धियां नहीं अपितु उसके परिवारिक संबंध होते हैं। ऐसा दिखाते हुए पितृसत्तात्मक रूढ़िवादी विचारधारा की ही स्थापना की जा रही होती है कि महिलाएं अपनी नागिरक जिम्मेदारी निभाते हुए भी परिवार की जिम्मेदारी ज्यादा बेहतर निभा सकती हैं।
महिलाओं की जेंडरगत भूमिका का इतना ज्यादा महिमा मंडन कर दिया जाता है कि जब कभी वह घर बाहर की भूमिका में समजस्य नहीं बैठा पाती तो स्वयं आत्मग्लानि व अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती हैं। जब पुरुषों की उपलब्धियों से प्रभावित फिल्में बनाई जाती हैं तो उनमें भी जेंडरगत भूमिकाओं पर चर्चा की जाती है किंतु पटकथा के केंद्र में पुरुषों की उपलब्धियां एवं योगदान ही होते हैं। पटकथा की भूमिका तैयार करने के लिए उसके पारिवारिक जीवन की भी चर्चा कर दी जाती है। परतुं उस किरदार को उसके सामाजिक योगदान के आधार पर परखा जाता है ना कि पारिवारिक योगदान के आधार पर।
इसी संबंध में हाल ही में आई शकुंतला देवी फिल्म की बात करें तो हम देखते हैं कि शकुंतला देवी विश्वविख्यात गणितज्ञ थीं। उनकी गणना क्षमता की दक्षता के कारण उन्हें मानव कम्प्यूटर की उपाधी मिली थी साथ ही वह लेखिका और ज्योतिषी भी थीं किंतु शंकुतला देवी फिल्म के केंद्र में उनकी यह उपलब्धियां नहीं अपितु उनके परिवारिक जीवन को केंद्र में रखा गया है। फिल्म में दर्शाया गया है कि उनके, उनकी बेटी व अपनी मां के साथ संबंध कैसे थे, इसे दर्शाते हुए सरसरी नजर से उनकी उपलब्धियों पर भी चर्चा कर दी गई है क्योंकि उस पर बात किए बिना उनकी कहानी पूरी नहीं हो सकती थी।