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विश्व प्रसिद्ध रूपाल वरदायिनी माता की ‘पल्ली’ निकली, लाखों लीटर शुद्ध घी से किया गया अभिषेक; गांव में बही घी की नदी

गांधीनगर जिले के रूपाल गांव में मां वरदायिनी शारदीय नवरात्र की नवमी-दशहरे की आधी रात पल्ली निकली। पल्ली दर्शन और मां वरदायिनी से मांगी गई मान्यता पूर्ण होने वाले भक्तों ने घी चढ़ाया किया। मंदिर से मिली जानकारी के अनुसार पल्ली उत्सव में इस बार 4 लाख लीटर से ज्यादा शुद्ध घी श्रद्धालुओं ने चढ़ाया। वहीं लाखों श्रद्धालुओं ने माती की पल्ली के दर्शन किए।

बता दें कि अगले पांच दिनों तक पल्ली ज्योति के दर्शन किए जा सकेंगे। मंदिर के अलावा मार्ग में 24 स्थानों पर पल्ली रुकी, जहां श्रद्धालुओं ने दर्शन कर घी से अभिषेक किया। 12 लाख श्रद्धालु रुपाल गांव में मां वरदायिनी का दर्शन करने पहुंचे। 24 स्थानों पर रोकी गई यात्रा जहां श्रद्धालुओं ने मां के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद मांगा।

क्या होता है पल्ली
पल्ली एक प्रकार का लकड़ी का ढ़ांचा है जिसमें 5 ज्योत होती हैं, इस पर घी का अभिषेक किया जाता है। सामान्य तौर पर माता की ज्योत में घी अर्पण किया जाता है, लेकिन पल्ली उत्सव में जिस तरह घी का चढ़ावा चढ़ता है वो अनोखा है। नवरात्र के नवमी-दशमी की रात मां वरदायिनी की रथ यात्रा पूरे गांव में घूमती है। इस दौरान श्रद्धालु मां के दर्शन करते हैं और बाल्टियां और बैरल भर घी माता पर अर्पित करते हैं।

रूपाल गांव में 27 चौराहे हैं जहां बड़े-बड़े बर्तनों, बैरल में घी भरकर रखा जाता है, जैसे ही पल्ली वहां आती है, लोग इस घी को माता की पल्ली पर अभिषेक करते हैं। अभिषेक करते ही ये घी नीचे जमीन पर गिर जाता है, जिसपर इस गांव के एक खास समुदाय का हक रहता है। इस समुदाय के लोग इस घी को इकट्ठा कर इसे पूरे साल इस्तमाल करते हैं।

पांडवों से जुड़ी है कहानी
रुपाल गांव की वरदायिनी माता की कहानी पांडवों से जुडी हुई है। कहा जाता है कि पांडव अपने अज्ञातवास में यहीं आकर रुके थे और अपने शस्त्र छुपाने के लिए उन्होंने वरदायिनी मां का आह्वान किया था। घी का अभिषेक करने पर वरदायिनी मां उत्पन्न हुईं और पांडवों को वरदान दिया था। पांडवों ने तब संकल्प किया था कि हर नवरात्रि की नवमी की रात को वरदायिनी माता के रथ को निकालकर उसे घी का अभिषेक करवायेंगे, तब से यह परंपरा चली आ रही है।

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